इस संसार मे मनुष्य तो बहुत है लेकिन सही मयानो मे मनुष्य वही है जिसके अंदर मानवता का बीज है मानवता उसे कहते है जो दुसरो के दुखो को देखकर दर्द और पीड़ा होती है और मन मे दया का भाव हो उत्पन्न हो, उसे ही सच्चा व्यक्ति कहा जा सकता है, वही दूसरी तरफ अगर किसी व्यक्ति का दुःख को देखकर कोई दर्द और पीड़ा नही होती है उस व्यक्ति के अंदर मानवता ही नही है उस व्यक्ति के अंदर की इंसानियत मर चुकी है जीवन मे सच्चा व्यक्ति वही है जो अपने दुखो के जैसा दुसरो के दुखो की अहमियत रखता है जिस व्यक्ति के अंदर दुसरो की तकलीफ अपनी तकलीफ महसूस होती है कई बार ऐसा होता है हम चाह कर भी दूसरों का दर्द कम नहीं कर सकते परंतु हम इंसानियत के नाते दिल से दो शब्द प्यार से कर सकते है आज के समय मे कोई भी व्यक्ति किसी दुःख या कठिन परिस्थितियों में साथ रहे या उसकी मदद करें थोड़ा दुख यू ही कम हो जाता है
आखिर मानव इतना दुःखी क्यो है दुनिया की इतनी सारी सुख सुविधाएं होने के बावजूद बहुत से व्यक्ति के अंदर मानवता के एक भी गुण नही है आखिर क्यो है? लोग मानवता की परिभाषा तो जानते हैं पर उस पर कभी खरा नहीं उतरे
आज मानव के पास क्या कुछ नहीं है दौलत शोहरत हर वह चीज जो वह चाहता है उसे मिल सकती कमी है तो केवल मानवता की सचमुच आज इंसान अपनी इंसानियत खो बैठा है जिस इंसान में दया प्रेम सहयोग और दूसरों की सेवा करने की भावना समाप्त हो जाए उसका स्थान वैर विरोध किया ने ले लिया हो तो वह इंसान इंसान का कहाया नहीं जा सकता इंसान का दुश्मन बना इंसान है इंसान का तो इमान भी खत्म हो चुका है और इंसानियत नाम की चीज ही नहीं रही
मानव जीवन की कीमत भी आज चंद सिक्कों के सिवा कुछ नहीं रही जैसे पैसा ही सब कुछ हो गया है यहां ईमान तक बिकते देखा है आज कल माहौल ऐसा हो गया है की सब कुछ पैसा ही है, आज के युग में भाई -भाई का नहीं है और बेटा बाप का पैसे के लिये तो अपने ईमान को भी बेच दिया है मानव ने,मानव से तो पशु लाख गुने अच्छे है
जो कि सभ्यता को नहीं मानते फिर भी हमसे ज्यादा सभ्य है उनमे सोचने समझने की शक्ति नही होती है फिर भी इंसानो से कई ज्यादा वफादार होते है वह नासमझ हम समझ वालों से कहीं बेहतर है और दूसरी तरफ मानव जिसके पास सोचने समझने की शक्ति है जो अपना अच्छा बुरा और दुसरो की पीड़ा को महसूस कर सकता है लेकिन वह ऐसा नही करता वह इस शक्ति का प्रयोग एक दूसरे को हानि पहुंचाने में करता इसलिए मन बेचैन रहता और अशांति नहीं मिल रही है
जरा सी आहट पर मानव डर उठो बैठता है क्योंकि इंसान हैवान बन चुका है चंद सिक्कों के लिए वह किसी का भी खून कर सकता है उसे कोमल भावनाओं की कदर नहीं रही इनको वह बुरी तरह से अपने पैरों तले रौंद चुका है आज के युग में मानव की कीमत ही क्या रह गई है जिन समाचार पत्रों में हम पढ़ते हैं कि किस प्रकार लोगों की जान जा रही हर रोज समाचारों में यही सुनने को मिलता है कि कहां पर कितनी मौतें हुई हत्याओं का सिलसिला देखकर लगता है कि हमारे देश में हर दिन वक्त से छत पर ही समाचार पत्र निकल सकता है
और इसका कारण यही है कि इंसान इंसान ना रहे और इंसान अपने आप मे भगवान बन चुका है कि किस प्रकार लोगों की जाने ले रहा हैं हर रोज समाचारों में भी यही सुनने को मिलता है कि कहां पर कितनी मौतें हुई ,हत्या का सिलसिला देखकर लगता है कि अब देश में हर दिन व्यक्ति से निरंतर ही समाचार पत्र निकल सकता है और इसका यही कारण है कि इंसान इंसान ना रहकर हैवान बन चुका है इंसानियत के सारे जड़ से समाप्त होते जा रहे हैं
दिखाने के लिए तो चेहरे पर मुस्कुराहट होगी परंतु मन में नफरत छिपी होगी मुंह पर तो आपकी स्तुति करने मे थकते नही,परंतु पीठ पीछे जलन और निंदा करेगे,मानव को किसी की खुशी देखने की हिम्मत नहीं रही
आज के आदमी आपके सामने राम राम बगल में छुरी वाली कहावत सच हो चुकी है इसलिए इंसान पर इस युग में विश्वास हीं नही रहा , एक पल पालतू जानवर पर यकीन किया जा सकता परंतु आदमी पर नही,पता नही कब पीछे से वार कर दे,आप सभी जानते हैं कुत्ता जब पूछ हिला रहा हो तो वह कांटे गा नही परंतु उस इंसान का कुछ पता नहीं कब वार कर दे और वार भी ऐसा कि सांप का डसना तो बचा जा सकता है पर इंसान का नहीं
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दूसरों को धोखा देना, दर्द देना आदमी की फितरत बन चुकी किसी को थोड़ी सी खुशी नहीं दे सकता इंसान उम्र भर का गम दे सकता है इसलिए तो हर एक दिल के दिल में दर्द भरा पड़ा है इंसान लेन -देन कर रहा है और इस दर्द को वही किसी के साथ बता भी नही सकता कि वह किसी के साथ क्या ऐसा नहीं करता कि उससे कोई समझता है वह डरता है कि कहीं उसके दुख का मजाक ना बन जाए कि स्वार्थी दुनिया में कौन किसी को अपना समझता हर कोई एक दूसरे से स्वार्थ से जुड़ा होता है केवल अपने स्वार्थ को आगे रखकर एक दूसरे से निभाता जाता है सच्ची हमदर्दी तो हम ढूंढने पर भी नहीं मिलते खुशकिस्मत होंगे वह जिन्हें कोई समझने वाला मिल जाता है
मानव कितना बदल गया है वह दूसरों के होठों पर मुस्कुराहट नहीं आंखों में आंसू देखना चाहते हैं जीने को तो जी रहे हैं मगर जीने का सलीका भूल गया ईश्वर ने जीवन की रचना की थी तो उसमें कोमल भावनाएं भरी प्यार और अपनेपन का एहसास भी, जिस इंसान को हर वह खुशी मिले ,जिसे वह इस धरती पर आकर पा सकता है परंतु धीरे-धीरे इंसान के मन में लालच आने लगी और वह और भी बहुत कुछ पाने की चाहत करने लगा इसी लालच में उसका सुख चैन छीन गया है बहुत कुछ पाने की लालसा है उसमें जो पा सकता था अर्थात वह अपनी इंसानियत को खो बैठा है ईश्वर ने तो हमें क्या बना कर भेजा था परंतु हम क्या से क्या बन गए
सच में मानव बदल चुका है पहले हर एक के दुख दर्द में शामिल होना इंसान अपना फर्ज समझता था किसी एक के घर में दुर्घटना होती तो पूरे गांव में चूल्हा नहीं जलता था और सभी गम में शामिल होते थे परंतु अब तो पता नहीं कितनी मौते होती है आज के इंसान को तो कोई फर्क नहीं पड़ता जीवन उसी तेज गति से चलता रहता है
आज के इंसानो के दिलों मे से प्यार समाप्त हो रहा है तो दिखावा बढ़ रहा है पता नहीं इंसानियत का मूल कहां छुप गया है हर कोई हमदर्दी चाहता है परंतु जो शुरू को प्यार भरे दो शब्द बोलने में ही खो जाता है यही कमी रह गई है आज के दौर में मानव के पास सब कुछ होते हुए अकेलेपन की कमी इसलिए किसी का भी दिल अंदर से कितना टूटा हुआ है जैसे अंदर से बिखर गया हो क्योंकि हम अंदर बाहर से एक दूसरे पर विश्वास ही नहीं रहा भरोसा ही नहीं रहा यही कारण है कि हम दुनिया भर की भी भीड़ में अकेले हैं
मानव ही मानव को इतना दुख क्यों पहुंचा रहा है जैसे मानव, मानव नहीं हैवान है यह सोचने की बात है स्वयं की ओर ध्यान दें कि हमारा व्यवहार कैसा है बेरुखी वाला या प्यार वाला हमारी बातें दूसरों के घरों में आग लगाती है अथवा प्यार की फुहार नहीं छोड़ती क्या हम दूसरों से ठीक वैसा ही व्यवहार करते हैं जैसा कि हम चाहते हैं हमारे साथ हो, दूसरों के सदगुण देखें अवगुण नही
हो सके तो स्वयं को इतना योग बना ले की लोग हम पर विश्वास करे अपना दिया हुआ वचन पूरा करना कि सभी को हम पर इतना विश्वास है कि हमारा हर एक वजह सच्चा है कि हमें किसी प्रकार की कसम खाने की आवश्यकता नहीं लोग हमारे जीवन का उदाहरण दें
ऐसे इंसान जीवन में कभी असफल नहीं होते क्योंकि जैसा कर्म करते हैं वैसा ही फल मिलता है इसलिए हमें चाहिए कि हम मानवता वाले अच्छे कर्म करते चले जाये या ना सोचे कि लोग क्या कहेंगे क्योंकि लोगों का काम है कहना ,कोई भी संसार को पसंद नहीं करता यदि हमारा देश सही है तो हमें कोई नहीं रोक पाए और धीरे-धीरे हमारा कर्तव्य बढ़ता जाए बस यदि आपका अंदर से दिल सुंदर हो तो आपको सामने वाले का दिल सुंदर ही ही दिखाई देगा ,अगर आपके मन में खोट है तो दूसरों के अंदर खुद ही नजर आयेगा यह सोचने समझने की बातें कई बार मानव का व्यवहार इतना कड़वाहट भरा हो जाता है कि सारे वातावरण को दूषित कर देता है यही कड़वाहट इतनी बढ़ जाती है कि लोग एक दूसरे का गला काटने से भी संकोच नहीं करता इस संसार मे इस जीवन की यात्रा को प्रेम एवं शांतिपूर्वक तय करने में जीवन साकार बना है
जिनका और लोगों का प्रभाव और दूसरे लोगों को ऐसे शिक्षा दें कि लोग प्रेम और सहनशीलता को धारण करें जिन लोगों पर बचाने की जिम्मेदारी है यही वह लोग हैं बाकी बातें करने लगे तो क्या बनेगा
लोग अक्सर कहते हैं कि अगर बाढ़ ही खेत को खाने लगे तो क्या होगा तो ,जो लोग शांति स्थापित कर सकते हैं या अवश्य ही अपना योगदान दें ताकि गांव से शहर ,और शहर से देश और देश से विश्व तक हम शांति स्थापित कर सकते है तभी हम सही अर्थों में इंसान कहलाने के हकदार हैं वरना ऐसे लोग तो बहुत मिल जाएंगे जो इंसानियत के बड़े-बड़े दावे तो करते हैं परंतु वास्तव में वही मानवता को हानि पहुंचा रहे होते हैं
जैसे एक बार एक चोर किसी घर में चोरी करने के लिए गया उसने देखा कि वहा पर ताला तोड़ने की आवश्यकता ही नहीं क्योंकि सामने चार अंको का कोड लिखा था उसमें लिखा था कि इसे दबाकर लाल बटन दबाएं जिससे ताला खुल जाए उस चोर ने वैसा ही किया 4 अंकों को दबाकर लाल बटन दबाया ही था कि अलार्म बज उठा आवाज सुनकर घर के लोग जाग गए और साथ ही पुलिस भी आ गई चोर पकड़ा गया
जो पुलिस उसे पकड़ के ले जा रही थी तो वह चोर बोल रहा था मेरे साथ धोखा हुआ इंसानियत पर से तो मेरा विश्वास ही उठ गया परंतु क्या वह स्वयं कोई अच्छा काम करने आया था किसी का घर लूटना कहां की इंसानियत है
मानवता के मार्ग पर चलने वाले लोग बहुत कम रह गई जो किसी का दिल नहीं दुखाये सभी की कोमल भावनाओं को ध्यान मे रखते हुये, पता नहीं सभी क्यों अपनी ही भावनाओं को ध्यान देते है और दूसरों से भी यही आशा रखते हैं कि वे भी उनकी भावनाओं का ध्यान रखें ऐसे में सिर्फ दूसरों का क्या होगा मैं अपने मानो अपने साथ-साथ दूसरे का भी ध्यान रखना चाहिए माना कि हम देवता नहीं बन सकते तो कम से कम इंसान तो बन जाये , हर इंसान अगर अपने अंदर की इंसानियत को खोने न दे तो वह सही मयनो मे एक मानवता के गुणों वाला इंसान बन सकता है, एक अच्छी सोच का निर्माण पहले अपने अंदर से ही शुरू की जा सकती है
आप सभी लोग जानते है की इस संसार मे मनुष्य अकेला ही आया है और अकेला ही जायेगा, वह दुनिया की कोई भी वस्तु चाहे उसके पास कितना भी धन क्यो ना हो वह जब भगवान के पास जायेगा तो, उसके साथ कुछ नही जायेगा, अगर जायेगा तो सिर्फ अच्छे कर्म, जो हमे इंसानो के द्वारा ही प्राप्त होता है मानवता ऐसा मार्ग है जो हमे अच्छे कर्मो मे ढालता है ,
दोस्तो यह लेख मानवता की परिभाषा क्या है यह लेख आपको कैसा लगा मुझे comment करे और बताये की आखिर यह मानवता लोगो मे कब जागृत होगी
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